भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के अंकपत्र समेत विभिन्न प्रमाणपत्रों की कापी कर अन्य राज्यों में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के रायपुर में विश्वविद्यालय के नाम पर ऐसी ही डिग्री के आधार पर विभिन्न अस्पतालों में नौकरी और कोशिश में लगे 10 लोगों की पहचान हुई है।
दो डिग्रियों को परीक्षा विभाग ने तत्काल अवैध बताया
उनके पास से बैचलर आफ आयुर्वेद मेडिसिन एंड सर्जन (बीएएमएस) की डिग्री मिली है। रायपुर से बिहार विश्वविद्यालय को डिग्री सत्यापन के लिए भेजी गई थी। यहां के रिकार्ड से मिलान करने के बाद दो डिग्रियों को परीक्षा विभाग ने तत्काल अवैध बता दिया है, जबकि शेष आठ को भी संदिग्ध बताया गया है।
एक डिग्री आठ से 10 लाख रुपये में खरीदी गई
उनकी पड़ताल की जा रही है। दोनों डिग्री बीएएमएस परीक्षा वर्ष 2007 और 2011 की हैं। पकड़े गए अभ्यर्थियों के अनुसार एक डिग्री आठ से 10 लाख रुपये में खरीदी गई है। विश्वविद्यालय प्रशासन इसमें स्थानीय कर्मियों की भी संलिप्तता खंगाल रहा है।
नियंत्रक का हस्ताक्षर स्कैन कर इस्तेमाल किया गया
हस्ताक्षर स्कैन कर इस्तेमाल करने पर हुआ शक फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह ने बिहार विश्वविद्यालय की डिग्री के फार्मेट की कापी कर ली है। परीक्षा नियंत्रक टेबुलेटर और अन्य लोगों के पैटर्न भी हूबहू हैं। परीक्षा नियंत्रक का हस्ताक्षर स्कैन कर इस्तेमाल किया गया है।
इसी संदेह पर रायपुर से डिग्री जांच के लिए विवि को भेजीगई थी। सबसे अधिक 10 फर्जी डिग्री बिहार विश्वविद्यालय की है। छत्रपति साहूजी महाराज विवि, कानपुर की तीन, पं. बीडी शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विवि, रोहतक की दो, जीवाजी विवि, ग्वालियर की तीन और राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान, विवि की एक डिग्री फर्जी पाई गई है। छत्तीसगढ़ आयुर्वेद बोर्ड ने संदेह होने पर संबंधित विश्वविद्यालयों से डिग्री के संबंध में जानकारी मांगी तो फर्जीवाड़ा सामने आया है।
देशभर में फर्जी डिग्री का जाल
बिहार विश्वविद्यालय से जुड़े एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि पहले के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से बिचौलियों का गिरोह सक्रिय है। पिछले साल भी गुजरात की पुलिस पांच अभ्यर्थियों की डिग्री लेकर जांच के लिए पहुंची थी। सभी फर्जी पाए गए थे। विगत 10 वर्षों में महाराष्ट्र, राजस्थान समेत देशभर से आयुर्वेद, होम्योपैथ व अन्य मेडिकल और प्रोफेशनल कोर्स से जुड़ी 100 से अधिक फर्जी डिग्री की पुष्टि की जा चुकी है।
फर्जीवाड़ा रोकने को अब उच्च सुरक्षायुक्त डिग्री
परीक्षा नियंत्रक डा. संजय कुमार ने कहा कि रजिस्टर देखने पर ही पता चल सकेगा कि कितनी संख्या में डिग्री जांच के लिए आई है। उन्होंने कहा कि पूर्व में हस्तलिखित डिग्री जारी की जाती थी। इस पर पदाधिकारियों के हस्ताक्षर होते थे। बिचौलिये आसानी से कापी कर दूसरी डिग्री तैयार कर लेते थे। अब विवि कंप्यूटराइज्ड डिग्री दे रहा है। इसमें डिजिटल लोगो, हस्तलिखित व डिजिटल हस्ताक्षर, बारकोड, वाटर मार्क समेत कई सिक्योरिटी फीचर्स जोड़े गए है। इसकी कापी नहीं की जा सकती।
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