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लीची को कीटों से बचाने के लिए बिहार विश्वविद्यालय में जूलॉजी विभाग करेगा रिसर्च

दुनिया भर में प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर की रसीली लीची पर बीआरए बिहार विश्वविद्यालय रिसर्च करेगा विवि लीची के पेड़ व फल को प्रभावित करने कीट-पतंगों की खोज करने जा रहा है। पिछले करीब 30 वर्षों में मौसम और कीटों के कारण हुए नुकसान का अध्ययन करने के साथ इससे बचाव के उपाए भी तलाशे जाएंगे।

विवि के जूलॉजी विभाग ने इसपर काम शुरू कर दिया है। इसके लिए विभाग के प्रोफेसर व रिसर्चरों की विशेष टीम बनाई जा रही है। विभागाध्यक्ष प्रो. मनिन्द्र कुमार ने बताया कि लीची को मुख्य रूप से कौन कीट प्रभावित करते हैं। इसका पता लगाया जाएगा। यह देखा गया है कि कुछ वर्षों में कीटों में बदलाव आ जाते हैं।

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30 वर्षों में कीटों ने किस तरह से लीची के पेड़ व फलों को नुकसान पहुंचाया है।

इससे लीची के फलों पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस रिसर्च के पीछे मुख्य रूप से दो उद्देश्य हैं। लीची मुजफ्फरपुर सहित उत्तर बिहार पर आर्थिक रूप से बड़ा प्रभाव डालता है। इसे और बेहतर करने और पीएचडी शोधार्थियों के शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने के ख्याल से इसके रिसर्च का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके लिए लीची अनुसंधान केन्द्र मुशहरी के साथ मौखिक सहमति बनी है।

जल्द एमओयू कर इस काम को शुरू किया जाएगा। विशेषज्ञों व रिसर्चरों की टीम मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, चंपारण व वैशाली के लीची बगानों का अध्ययन करेगी। यह भी पता किया जाएगा कि पिछले करीब 30 वर्षों में कीटों ने किस तरह से लीची के पेड़ व फलों को नुकसान पहुंचाया है।

साथ ही जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से भी समझौता किया जाएगा, ताकि नये तरह के कीटों का पता लगाया जा सके। रिसर्च से लीची किसानों को फायदा होगा।

बनेगी विशेषज्ञों की टीम

लीची अनुसंधान केन्द्र और बिहार विवि के जूलॉजी विभाग के बीच मौखिक समझौता, जल्द होगा एमओयू

पिछले 30 वर्षों में हुए नुकसान को बनाया आधार, मुजफ्फरपुर सहित उत्तर बिहार के जिलों में होगा रिसर्च फसलों को प्रभावित करने वाले नए कीटों पर रिसर्च को जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से भी होगा समझौता

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