BRABU: बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में 13 लाख से अधिक विद्यार्थियों के टेबुलेटिंग रजिस्टर (टीआर) सड़े-गले हाल में पहुंच गए हैं। देखरेख नहीं होने के कारण टीआर में दीमक लग गया है। आवेदन मिलने पर कोई प्रमाण नहीं होने के कारण विवि की डिग्री जारी करने में परेशानी हो रही है। ऐसी स्थिति में उसको दूसरी कापी कालेज व अन्य जगहों से मंगवाकर डिग्री जारी की जा रही है।
यूनिवर्सिटी को सत्यापन करने में परेशानी हो रही है
यूनिवर्सिटी की ओर से टीकार को डिजिटल करने की कवायद चल रही है। करीब 42 वर्ष के टीआर को स्कैन कर लिया गया है, लेकिन इससे पूर्व के करीब 10 लाख से विद्यार्थियों के टीआर इतनी बरी दशा में है कि उन्हें स्कैन कर पाना भी संभव नहीं है। इससे पूर्व का और जर्जर हुए टीआर में जिन विद्यार्थियों के नाम हैं उनकी ओर से डिग्री के लिए आवेदन करने पर यूनिवर्सिटी को सत्यापन करने में परेशानी हो रही है।
प्रमाणपत्र जारी करने के लिए टीआर से होता है सत्यापन
विश्वविद्यालय की ओर से प्रोविजनल समेत कोई भी प्रमाणपत्र जारी करने से पहले छात्र की जानकारी टीआर से ही सत्यापित की जाती है। इसकी एक कापी कालेज और संबंधित विभाग को भी भेजी जाती है, जहां से विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। वहीं अन्य विभागों में भी इसकी कापी सुरक्षित रहती है। विवि में परीक्षा विभाग के पास टीआर रहता है।
कई टीआर परीक्षा विभाग से गायब:
यूनिवर्सिटी के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार परीक्षा विभाग से दर्जनों टीआर गायब हैं। ये टीआर वर्ष 2000 के बाद के हैं। डिग्री के लिए जब अभ्यर्थियों ने आवेदन किया, कई बार डिग्री के लिए चक्कर लगाए, टीआर की खोजबीन हुई तो पूरे विभाग में खोजने के बाद भी पता नहीं चला। ऐसी स्थिति में अब उनके संबंधित संस्थान से टीआर मंगवाया जा रहा है।
1980 तक के टीआर को डिजिटल फार्मेट में सुरक्षित कर लिया गया है। दीमक लग जाने और ठीक से नहीं रखे होने के कारण पहले के टीआर बर्बाद हुए हैं। उन्हें भी डिजिटल फार्मेट में करने के लिए प्रयास किया जा रहा है। – संजय कुमार, परीक्षा नियंत्रक, बिहार यूनिवर्सिटी
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