बीआरए बिहार विवि में पिछले 40 वर्षों से शोध पत्रिका (रिसर्च जर्नल) नहीं आया है। केंद्रीय पुस्तकालय में वर्ष 1983 में जर्नल आया था, लेकिन वह बैक डेट का ही था। वर्ष 2015 में जब नैक मूल्यांकन हुआ तो सभी को हटा दिया गया। पीजी विभागों में भी जर्नल नहीं है। बिहार विवि में जर्नल नहीं होने से शोधार्थियों को बीएचयू और दिल्ली विवि जाकर शोध पूरा करना पड़ता है।
बिहार विवि के अर्थशास्त्र विभाग के अजीत कुमार और नेहा कुमारी ने बताया कि शोध पत्रिका नहीं होने से उन्हें करंट डाटा नहीं मिल पाता है। इससे उनका शोध पूरा नहीं हो पाता। मनोविज्ञान की छात्रा निधि ने बताया कि यह पता नहीं है चल पाता है कि जिस टॉपिक पर हम काम कर रहे हैं उसमें अपडेट क्या है।
पीजी विभागों में रिसर्च जर्नल छपना हुए बंद
विवि में के पीजी विभागों में शोध पत्रिका छपनी बंद हो गई है। राजनीतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल ओझा ने बताया कि पहले पॉलिटिकल डिस्कोर्स रिसर्च जर्नल निकला करता था। वह तीन वर्ष से बंद है। इसे फिर से शुरू करने की कोशिश हो रही है। विभागाध्यक्षों ने बताया कि जर्नल के लिए विवि से राशि नहीं मिलती है। वर्ष 2018 में विवि के पीजी विभागों में पांच हजार रुपये दिए गए थे, लेकिन खरीदारी नहीं हुई। विभागाध्यक्षों ने बताया कि पांच हजार में कोई रिसर्च जर्नल नहीं मिलती है। वहीं, विवि ने जर्नल के लिए इस वित्तीय वर्ष में 47 लाख 87 हजार 450 रुपये का बजट बनाया है।
नहीं मिलता सही डाटा
• पुस्तकालय के साथ पीजी विभागों ने भी नहीं की खरीदारी
• छात्र बीएचयू व दिल्ली विवि जाकर शोध को करते हैं पूरा
• 47 लाख से जर्नल की खरीदारी के लिए बजट में प्रावधान
बिहार विवि में रिसर्च जर्नल की खरीदारी की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। सरकार को बजट भेजा जा रहा है। इसमें जितनी राशि की मांग होती है उतनी जारी नहीं होती है। इसके बावजूद इस बार रिसर्च जर्नल की खरीद की जाएगी।
प्रो. एके ठाकुर, रजिस्ट्रार विधि
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