नेताजी की 125 वां जयंती वर्ष

स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस को उनकी जयंती के 125वें वर्ष में प्रवेश पर कृतज्ञ राष्ट्र का

नमन, जिन्होंने जीवन में बस तीन चीजें चाहीं- चरित्र, ज्ञान और कर्म. जिनके लिए राष्ट्रवाद मानव जाति के

उत्तम दर्शकों सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् से प्रेरित था. जिन्हें पता था कि यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के युद्ध में

कौन-कौन जीवित बचेंगे, परंतु यह जानते थे कि अंत में विजय हमारी ही होगी. जिनका संकल्प था कि राह

भले ही भयानक और पथरीली हो, यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो, फिर भी आगे बढ़ना ही है.(नेताजी की 125 वां जयंती)

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महानायक सुभाष चंद्र बोस.(नेताजी की 125 वां जयंती)

निजी जीवन से देश बड़ा होता है हम मिटते हैं, तब देश खड़ा होता है



हमारा कर्तव्य है विहम अपनी स्वतंत्रता का माल अपने चन से चुकार हमें अपने बलिदान और परिमारों जो आजादी मिले हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए,

मेरे मन में कोई संदेह नहीं है किहमारे देशळी प्रमुख समस्याओ जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुतताइन एवं वितरण का समाधान रिया समाजवादीतरीके से ही किया जा सकता है.

जो अपनी तायात पर भरोसा करते हैं, वे आगे बढ़ते हैं और उचार की ताकत वाले घायल हो जात है.

सुभाष चन्द्र बोस शुभाष चॉन्द्रो बोशु, जन्म: 23 जनवरी 1897, मृत्यु: 18 अगस्त 1945) भारत के

स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने

के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था

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(नेताजी की 125 वां जयंती) महानायक सुभाष चंद्र बोस

[1]। उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे

आजादी दूँगा” का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया।

[2]भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं। (नेताजी की 125 वां जयंती)

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से सहायता लेने का प्रयास किया

था, तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था।

[3] नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को

सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व

कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इंफाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत

की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और

आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी

सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।

1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से

मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध

था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें

उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं।

[4] नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। (नेताजी की 125 वां जयंती)

[5] जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में

रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे

उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित (सम्बन्धित)

दस्तावेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये?(यथा संभव (सम्भव) नेता जी की मौत नही हुई थी)

[6] 16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नेता जी के लापता होने के रहस्य से जुड़े

खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये विशेष पीठ के गठन का आदेश दिया।

[7] आज़ाद हिंद सरकार के ७५ वर्ष पूर्ण होने पर इतिहास मे पहली बार वर्ष २०१८ में भारत के प्रधानमन्त्री

नरेंद्र मोदी ने लाल किले पर तिरंगा फहराया। २३ जनवरी २०२१ को नेताजी की १२५वीं जयंती है जिसे

भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

ZEEBIHAR- https://zeebihar.com/bihar-sarkar-shiksha-vibhag/