बीआरए बिहार विश्वविद्यालय की ओर से अंगीभूत कालेजों में संचालित वोकेशनल कार्स में नामांकन की गति कापी मंद है। रोजगार की दृष्टि से शुरू किए गए इन कोर्स में पिछले कुछ वर्षों में प्लेसमेंट की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण इस ओर से विद्यार्थियों का रूझान कम हुआ है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि प्लेसमेंट नहीं होने के कारण वोकेशनल कोर्स को भाव नहीं मिल रहा है।
एलएस कालेज, आरडीएस कालेज, एमडीडीएम कालेज, एमपीएस साइंस कालेज, आरबीबीएम कालेज, एलएनटी कालेज, एमएस केबी कालेज, रामेश्वर सिंह कालेज में मुख्यालय में वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई हो रही है। मुख्यालय के इन प्रमुख कालेजों में बीबीए, बीसीए को छोड़कर अन्य में काफी कम संख्या में नामांकन हुआ है। विवि की ओर से जारी कार्यक्रम के अनुसार महज पांच दिनों का ही समय नामांकन के लिए शेष है। दो सितंबर तक कालेजों को नामांकन लेकर छह सितंबर तक विवि में सीसीडीसी कार्यालय में रिपोर्ट भेजनी है।
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सीएनडी, आइएमबी, आइएमबी, मधुबनी पेंटिंग, फिश एंड फिशरीज, इलेक्ट्रानिक्स, समेत डेढ़ दर्जन से अधिक कोर्स का संचालन इन कालेजों में हो रहा है। इस वर्ष बीबीए, बीसीए, सीएनडी को छोड़ दिया जाए जो अन्य में इक्का-दुक्का ही नामांकन हो सका है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमानुसार लगातार तीन वर्षों तक कम नामांकन होने पर कोर्स का संचालन रोकने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। क्योंकि ये कोर्स सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित होते हैं।
सामान्य कोर्स से चार से पांच गुणी है फीस :
वोकेशनल कोर्स की फीस सामान्य कोर्स की तुलना में चार से पांच गुणी अधिक है। 12 से पंद्रह हजार रुपये प्रतिवर्ष विद्यार्थियों से फीस के रूप में लिए जाते हैं। ऐसे में कोर्स पूरा करने में करीब 40 हजार रुपये कोर्स फी लिया जा रहा है। वहीं इक्का-दुक्का छात्र-छात्राओं का ही प्लेसमेंट हो रहा है। वह भी पिछले वर्ष नहीं हो सका।
इंटर्नशिप और ट्रेनिंग भी ठीक से नहीं हो रहा है। इस कारण भी अब इन कोर्स से विद्यार्थियों का ध्यान हट रहा है। विश्वविद्यालय से जुड़े अधिकारी और कालेज के विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यह भी इन कोर्सों की ओर रूझान कम होने का कारण बना है।
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