BRABU: बिहार यूनिवर्सिटी मुजफ्फरपुर में रिटायर शिक्षकों की ड्यूटी स्नातक पार्ट-1 की कॉपियों की जांच में लगा दी गई। इनमें से कई शिक्षकों ने कॉपियों का मूल्यांकन भी कर दिया।
इसका खुलासा तब हुआ जब पार्ट-3 की कॉपियों के मूल्यांकन के लिए परीक्षकों की सूची खंगाली गई।
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कॉलेजों ने अपने यहां से रिटायर हुए शिक्षकों के नाम परीक्षा विभाग को भेज दिए थे। मामला सामने आने के बाद आनन-फानन में इन रिटायर शिक्षकों के नाम परीक्षकों की सूची से हटाए गए।
परीक्षा नियंत्रक प्रो. टीके डे ने बताया
परीक्षा नियंत्रक प्रो. टीके डे ने बताया कि परीक्षकों की सूची में लगभग 50 रिटायर शिक्षकों के नाम थे। जांच के बाद इन नामों को सूची से हटाया गया है।
साथ ही कॉलेजों को पत्र लिखकर हिदायत दी गई कि वह अपने यहां से नियमित शिक्षकों के नाम ही मूल्यांकन ड्यूटी के लिए भेजें। पर परीक्षा नियंत्रक ने यह नहीं बताया कि जिसकी लापहवाही से यह गड़बड़ी हुई उसपर क्या कार्रवाई होगी।
सिर्फ नियमित शिक्षक ही कर सकते हैं मूल्यांकन
बिहार में विश्वविद्यालय अधिनियम में पारित नियम के अनुसार कॉपियों का मूल्यांकन सिर्फ नियमित शिक्षक ही कर सकते हैं। रिटायर के अलावा गेस्ट शिक्षकों को भी कॉपी जांच की ड्यूटी में नहीं लगाना है।
बिहार यूनिवर्सिटी से जुड़े लोगों ने बताया कि पार्ट-1 में रिटायर शिक्षकों के अलावा अतिथि शिक्षकों की भी ड्यूटी कॉपी जांच में लगी थी। इस बार अतिथि शिक्षकों को भी कॉपी मूल्यांकन की ड्यूटी से अलग कर दिया है।
कॉलेज की लापरवाही से छात्रों के भविष्य से खिलवाड़
परीक्षा विभाग का कहना है कि कॉलेजों की लापरवाही से
छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ हुआ है। कॉलेज प्रशासन को
अपने यहां से शिक्षकों की सूची भेजते हुए यह देखना चाहिए
था कि वह शिक्षक नियमित हैं या रिटायर कर गए हैं। सूत्रों
के अनुसार कुछ रिटायर शिक्षकों को मूल्यांकन की ड्यूटी
करने से रोका गया तो कई शिक्षकों ने मूल्यांकन पूरा किया।
यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक प्रो. टीके डे ने बताया
बिहार यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक प्रो. टीके डे ने बताया कि पार्ट-3 की कॉपियों के मूल्यांकन में काफी सतर्कता बरती जा रही है। एक-एक विषय की कॉपियों के बंडल को एक-एक कर खोला जा रहा है।
इसके अलावा कॉपियों की कोडिंग और जांच भी एक साथ कराई जा रही है। ताकि इसमें किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं रहे। कोशिश है कि जल्द से जल्द कॉपियों की जांच पूरी कर रिजल्ट जारी कर दिया जाए।
परीक्षक बनाने में पहले भी हो चुकी है गड़बड़ी
विवि में कॉपियों के मूल्यांकन के लिए परीक्षक बनाने में पहले भी गड़बड़ी सामने आ चुकी है। पिछली बार पीजी कॉपियों के मूल्यांकन में स्नातक में पढ़ाने वाले शिक्षकों की ड्यूटी लगा दी थी। इस पर छात्र संगठनों ने हंगामा किया। इसके बाद पीजी मूल्यांकन में स्नातक की जगह पीजी की शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई।
बिहार यूनिवर्सिटी में यह परंपरा बन गई है कि गड़बड़ी और लापरवाही पकड़े जाने पर कार्रवाई नहीं की जाती। मामले पकड़े जाते हैं तो जांच के आदेश दिए जाते हैं, कमेटी बनती है लेकिन, दोषी बच जाते हैं। इस बार क्या होता है यह आने वाला वक्त बताएगा।
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