ऐसा लगता है कि बिहार को किसी की नजर लग गई है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि बिहार अब तक सिर्फ बाढ़ की विभिषिका से ही जूझता था, लेकिन पिछले दो सालों मे पहले एईएस, फिर कोरोना और अब ब्लैक फंगस के मामलों में तेजी आनी शुरू हो गई है।
यहां कोरोनावायरस संक्रमण (CoronaVirus Infection) से उबरे मरीजों को इन दिनों ब्लैक फंगस (Black Fungus) से भी जूझना पड़ रहा है।
बिहार की बात करें तो पोस्ट कोविड मरीजों (Post COVID Patients) में अब तक ब्लैक फंगस के 30 मामले मिल चुके हैं। पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में शनिवार को पांच नए मरीज पहुंचे। वहां पहले से भी 10 मरीज चिह्नित हैं। माना जा रहा है कि बिहार में इस माह के अंत तक इसकी संख्या 1000-1500 तक पहुंच सकती है।
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ब्लैक फंगस का सबसे ज्यादा प्रभाव आंखों पर पड़ता है। अब तक जो मामले सामने आए हैं, उनमें कईयों को अपनी आंखों की रोशनी गंवानी पड़ी है। वहीं कुछ लोगों की मौत भी हो गई है। डॉक्टर्स की मानें तो ब्लैक फंगस से संक्रमित मरीजों के नाक, चेहरे, दांत, आंख और सिर में दर्द रहता है। उनके नाक से पानी और खून निकल सकता है। नाक में काली पपड़ी भी जम सकती है।
आंखें लाल हो सकतीं हैं, उनमें सूजन हो सकती है। कई मामलों में आंखें बाहर निकल आती हैं तथा रोशनी भी जा सकती है। प्रारम्भिक अवस्था में पहचान हो जाने पर यह संक्रमण दवा के कुछ डोज से ही ठीक हो जाता है। देर होने पर सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
बिहार में अब तक 30 मरीजों में ब्लैक फंगस की पहचान की गई है। इनमें पटना एम्स में 15 मरीज भर्ती हैं या चिह्नित किए गए हैं। पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) में दो, रूबन मेमोरियल अस्पताल में दो और पारस अस्पताल में चार मरीज मिल चुके हैं। पटना एम्स में भर्ती एक मरीज की आंख की रोशनी चली गई है तो दूसरा बेहोशी की स्थिति में है। एक के ब्रेन में भी संक्रमण है। बढ़ते मामलों को देखते हुए पटना एम्स में सोमवार से 20 बेड का ब्लैक फंगस वार्ड खोलने की तैयारी की जा रही है।
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